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Thursday, March 13, 2025

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हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई

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हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई 
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई

एक ही हादसा तो है और वो यह के आज तक
बात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई

बाद भी तेरे जान-ए-जां दिल में रहा अजब समाँ
याद रही तेरी यां फिर तेरी याद भी गई

सैने ख्याल-ए-यार में की ना बसर शब्-ए-फिराक 
जबसे वो चांदना गया तबसे वो चांदनी गयी 

उसके बदन को दी नुमूद हमने सुखन में और फिर
उसके बदन के वास्ते एक कबा भी सी गयी

उसके उम्मीदे नाज़ का हमसे ये मान था की आप
उम्र गुज़ार दीजिये, उम्र गुज़ार दी गयी

उसके विसाल के लिए अपने कमाल के लिए
हालत-ए-दिल की थी खराब और खराब की गई

तेरा फिराक़ जान-ए-जां ऐश था क्या मेरे लिए
यानी तेरे फिराक़ में खूब शराब पी गई

उसकी गली से उठके मैं आन पड़ा था अपने घर
एक गली की बात थी और गली गली गयी

चार सू मेहरबाँ है चौराहा – Chaar soo meharabaan hai chauraahaa Ajanabii shahar ajanabii baajaar

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चार सू मेहरबाँ है चौराहा
अजनबी शहर अजनबी बाज़ार 
मेरी तहवील में हैं समेटे चार
कोई रास्ता कहीं तो जाता है
चार सू मेहरबाँ है चौराहा

 

chaar soo meharabaan hai chauraahaa
ajanabii shahar ajanabii baajaar
merii tahaviil men hain sameTe chaar
koii raastaa kahiin to jaataa hai
chaar soo meharabaan hai chauraahaa

ख़ामोशी कह रही है कान में क्या – Khaamoshii kah rahii hai kaan men kyaa aa rahaa hai mere

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ख़ामोशी कह रही है, कान में क्या 
आ रहा है मेरे, गुमान में क्या 

अब मुझे कोई, टोकता भी नहीं 
यही होता है, खानदान में क्या 

बोलते क्यों नहीं, मेरे हक़ में 
आबले[1] पड़ गये, ज़बान में क्या 

मेरी हर बात, बे-असर ही रही 
नुक़्स है कुछ, मेरे बयान में क्या 

वो मिले तो ये, पूछना है मुझे 
अब भी हूँ मैं तेरी, अमान में क्या 

शाम ही से, दुकान-ए-दीद है बंद 
नहीं नुकसान तक, दुकान में क्या 

यूं जो तकता है, आसमान को तू 
कोई रहता है, आसमान में क्या 

ये मुझे चैन, क्यूँ नहीं पड़ता 
इक ही शख़्स था, जहान में क्या

khaamoshii kah rahii hai, kaan men kyaa
aa rahaa hai mere, gumaan men kyaa

ab mujhe koii, Tokataa bhii nahiin
yahii hotaa hai, khaanadaan men kyaa

bolate kyon nahiin, mere hak men
aabale[1] paD gaye, jbaan men kyaa

merii har baat, be-asar hii rahii
nuks hai kuchh, mere bayaan men kyaa

vo mile to ye, poochhanaa hai mujhe
ab bhii hoon main terii, amaan men kyaa

shaam hii se, dukaan-e-diid hai band
nahiin nukasaan tak, dukaan men kyaa

yoon jo takataa hai, aasamaan ko too
koii rahataa hai, aasamaan men kyaa

ye mujhe chain, kyoon nahiin paDtaa
ik hii shakhs thaa, jahaan men kyaa

दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-जफ़ा नहीं किया Dil ne vafaa ke naam par kaar-e-jafaa nahiin kiyaa

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दिल ने वफ़ा के नाम पर कार-ए-जफ़ा नहीं किया 
ख़ुद को हलाक कर लिया ख़ुद को फ़िदा नहीं किया 

कैसे कहें के तुझ को भी हमसे है वास्ता कोई 
तूने तो हमसे आज तक कोई गिला नहीं किया 

तू भी किसी के बाब में अहद-शिकन हो ग़ालिबन 
मैं ने भी एक शख़्स का क़र्ज़ अदा नहीं किया 

जो भी हो तुम पे मौतरिज़ उस को यही जवाब दो 
आप बहुत शरीफ़ हैं आप ने क्या नहीं किया 

जिस को भी शेख़-ओ-शाह ने हुक्म-ए-ख़ुदा दिया क़रार 
हमने नहीं किया वो काम हाँ बा-ख़ुदा नहीं किया

निस्बत-ए-इल्म है बहुत हाकिम-ए-वक़्त को अज़ीज़ 
उस ने तो कार-ए-जेहन भी बे-उलामा नहीं किया

 

dil ne vafaa ke naam par kaar-e-jafaa nahiin kiyaa
khud ko halaak kar liyaa khud ko fidaa nahiin kiyaa

kaise kahen ke tujh ko bhii hamase hai vaastaa koii
toone to hamase aaj tak koii gilaa nahiin kiyaa

too bhii kisii ke baab men ahad-shikan ho gaaliban
main ne bhii ek shakhs kaa krj adaa nahiin kiyaa

jo bhii ho tum pe mautarij us ko yahii javaab do
aap bahut shariif hain aap ne kyaa nahiin kiyaa

jis ko bhii shekh-o-shaah ne hukm-e-khudaa diyaa kraar
hamane nahiin kiyaa vo kaam haan baa-khudaa nahiin kiyaa

nisbat-e-ilm hai bahut haakim-e-vakt ko ajiij
us ne to kaar-e-jehan bhii be-ulaamaa nahiin kiyaa

अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे- Akhlaak n baratenge mudaaraa n karenge

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अख़लाक़ न बरतेंगे मुदारा न करेंगे
अब हम किसी शख़्स की परवाह न करेंगे

कुछ लोग कई लफ़्ज़ ग़लत बोल रहे हैं
इसलाह मगर हम भी अब इसलाह न करेंगे

कमगोई के एक वस्फ़-ए-हिमाक़त है बहर तो
कमगोई को अपनाएँगे चहका न करेंगे

अब सहल पसंदी को बनाएँगे वातिरा
ता देर किसी बाब में सोचा न करेंगे

ग़ुस्सा भी है तहज़ीब-ए-तआल्लुक़ का तलबगार
हम चुप हैं भरे बैठे हैं गुस्सा न करेंगे

कल रात बहुत ग़ौर किया है सो हम ए “जॉन”
तय कर के उठे हैं के तमन्ना न करेंगे

akhlaak n baratenge mudaaraa n karenge
ab ham kisii shakhs kii paravaah n karenge

kuchh log kaii lafj glat bol rahe hain
isalaah magar ham bhii ab isalaah n karenge

kamagoii ke ek vasf-e-himaakt hai bahar to
kamagoii ko apanaaenge chahakaa n karenge

ab sahal pasandii ko banaaenge vaatiraa
taa der kisii baab men sochaa n karenge

gussaa bhii hai tahajiib-e-taalluk kaa talabagaar
ham chup hain bhare baiThe hain gussaa n karenge

kal raat bahut gaur kiyaa hai so ham e “jŏn”
tay kar ke uThe hain ke tamannaa n karenge

तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है

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तू भी चुप है मैं भी चुप हूँ यह कैसी तन्हाई है
तेरे साथ तेरी याद आई, क्या तू सचमुच आई है

शायद वो दिन पहला दिन था पलकें बोझल होने का
मुझ को देखते ही जब उन की अँगड़ाई शरमाई है

उस दिन पहली बार हुआ था मुझ को रफ़ाक़ात का एहसास
जब उस के मलबूस की ख़ुश्बू घर पहुँचाने आई है

हुस्न से अर्ज़ ए शौक़ न करना हुस्न को ज़ाक पहुँचाना है
हम ने अर्ज़ ए शौक़ न कर के हुस्न को ज़ाक पहुँचाई है

हम को और तो कुछ नहीं सूझा अलबत्ता उस के दिल में
सोज़ ए रक़बत पैदा कर के उस की नींद उड़ाई है

हम दोनों मिल कर भी दिलों की तन्हाई में भटकेंगे
पागल कुछ तो सोच यह तू ने कैसी शक्ल बनाई है

इश्क़ ए पैचान की संदल पर जाने किस दिन बेल चढ़े
क्यारी में पानी ठहरा है दीवारों पर काई है

हुस्न के जाने कितने चेहरे हुस्न के जाने कितने नाम
इश्क़ का पैशा हुस्न परस्ती इश्क़ बड़ा हरजाई है

आज बहुत दिन बाद मैं अपने कमरे तक आ निकला था
ज्यों ही दरवाज़ा खोला है उस की खुश्बू आई है

एक तो इतना हब्स है फिर मैं साँसें रोके बैठा हूँ
वीरानी ने झाड़ू दे के घर में धूल उड़ाई है

एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं – Ek hunar hai jo kar gayaa hoon main sab ke dil se utar gayaa hoon main

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एक हुनर है जो कर गया हूँ मैं 
सब के दिल से उतर गया हूँ मैं

कैसे अपनी हँसी को ज़ब्त करूँ
सुन रहा हूँ के घर गया हूँ मैं

क्या बताऊँ के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूँ मैं

अब है बस अपना सामना दरपेश
हर किसी से गुज़र गया हूँ मैं

वो ही नाज़-ओ-अदा, वो ही ग़मज़े
सर-ब-सर आप पर गया हूँ मैं 

अजब इल्ज़ाम हूँ ज़माने का
के यहाँ सब के सर गया हूँ मैं

कभी खुद तक पहुँच नहीं पाया
जब के वाँ उम्र भर गया हूँ मैं

तुम से जानां मिला हूँ जिस दिन से
बे-तरह, खुद से डर गया हूँ मैं

कू–ए–जानां में सोग बरपा है
के अचानक, सुधर गया हूँ मैं

ek hunar hai jo kar gayaa hoon main
sab ke dil se utar gayaa hoon main

kaise apanii hansii ko jbt karoon
sun rahaa hoon ke ghar gayaa hoon main

kyaa bataaoon ke mar nahiin paataa
jiite jii jab se mar gayaa hoon main

ab hai bas apanaa saamanaa darapesh
har kisii se gujr gayaa hoon main

vo hii naaj-o-adaa, vo hii gmaje
sar-b-sar aap par gayaa hoon main

ajab iljaam hoon jmaane kaa
ke yahaan sab ke sar gayaa hoon main

kabhii khud tak pahunch nahiin paayaa
jab ke vaan umr bhar gayaa hoon main

tum se jaanaan milaa hoon jis din se
be-tarah, khud se Dar gayaa hoon main

koo–e–jaanaan men sog barapaa hai
ke achaanak, sudhar gayaa hoon main

तुम हकीकत नहीं हो हसरत हो

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तुम हक़ीक़त नहीं हो हसरत हो
जो मिले ख़्वाब में वो दौलत हो

तुम हो ख़ुशबू के ख़्वाब की ख़ुशबू
और इतने ही बेमुरव्वत हो

तुम हो पहलू में पर क़रार नहीं
यानी ऐसा है जैसे फुरक़त हो 

है मेरी आरज़ू के मेरे सिवा
तुम्हें सब शायरों से वहशत हो

किस तरह छोड़ दूँ तुम्हें जानाँ
तुम मेरी ज़िन्दगी की आदत हो 

किसलिए देखते हो आईना 
तुम तो ख़ुद से भी ख़ूबसूरत हो

दास्ताँ ख़त्म होने वाली है
तुम मेरी आख़िरी मुहब्बत हो

मेरी अक्ल-ओ-होश की

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मेरी अक्ल-ओ-होश की सब आसाईशें
तुमने सांचे में ज़ुनूं के ढाल दी
कर लिया था मैंने अहद-ए-तर्क-ए-इश्क
तुमने फिर बाँहें गले में डाल दी

यूँ तो अपने कासिदाने-दिल के पास
जाने किस-किस के लिए पैगाम है
जो लिखे जाते थे औरो के नाम
मेरे वो खत भी तुम्हारे नाम हैं

ये तेरे खत, तेरी खुशबू, ये तेरे ख्वाब-ओ-खयाल,
मताऐ-जाँ है तेरे कौल-ओ-कसम की तरह

गुजश्ता सालों मैनें इन्हे गिन के रखा है
किसी गरीब की जोड़ी हुई रकम की तरह 

है मुहब्ब्त हयात की लज्जत
वरना कुछ लज़्ज़त-ए-हयात नहीं 
क्या इज़ाज़त है एक बात कहूँ
मगर खैर कोई बात नहीं

हम के ए दिल सुखन सरापा थे

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हम के ए दिल सुखन सरापा थे
हम लबो पे नहीं रहे आबाद 

जाने क्या वाकया हुआ 
क्यू लोग अपने अन्दर नहीं रहे आबाद

शहर-ए-दिन मे अज्ब मुहल्ले थे 
उनमें अक्सर नहीं रहे आबाद