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बदलेगा रंग शाम-ए-आलम
मेरे बाद आ
होगा ज़रा सा दर्द भी कम
मेरे बाद आ
तन्हाइयाँ भी अपनी हैं
अपनी हैं साअतें
ख़ुद-साख़्ता हैं सारे ये ग़म
मेरे बाद आ
ख़्वाबों के इस मुंडेर से देखा किए मुझे
ये और बात है कि हुई चश्म मेरी नम
नमनाकियों की बात ख़त्म
मेरे बाद आ
हरियालियों की भीड़
मगर दुख की काश्त है
बदलेगा रंग रंग-चर्ख़-ए-कुहन
मेरे बाद आ