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दिल को दुनिया का है सफ़र दर-पेश
और चारों तरफ़ है घर दर-पेश
है ये आलम अजीब और यहाँ
माजरा है अजीब-तर दर-पेश
दो जहाँ से गुज़र गया फिर भी
मैं रहा ख़ुद को उम्र भर दर-पेश
अब मैं कू-ए-अबस शिताब चलूँ
कई इक काम हैं उधर दर-पेश
उस के दीदार की उम्मीद कहाँ
जब के है दीद को नज़र दर-पेश
अब मेरी जान बच गई यानी
एक क़ातिल की है सिपर दर-पेश
किस तरह कूच पर कमर बाँधूँ
एक रह-ज़न की है कमर दर-पेश
ख़लवत-ए-नाज़ और आईना
ख़ुद-निगर को है ख़ुद-निगर दर-पेश