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Friday, March 14, 2025

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हमदम को भूल गया

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अपनी खुशियों में यों खोया मेरे गम को भूल गया.
वो “मैं” में डूबा है जबसे तबसे “हम” को भूल गया.

डूबे-उतरे-तैरे अब वो नदिया के सँग-सँग खेले,
पर वो नदिया आई जहाँ से उस उद्गम को भूल गया.

चारों ओर फसल लहराती दिखती उसके खेतों में,
जिसने इन खेतों को सींचा उस मौसम को भूल गया.

गंगा-यमुना की महिमा को गाता फिरता है सबसे,
लेकिन इन दोनों के पावन संगम को वो भूल गया.

मेरा कितना दम भरता था वो अपनी हर महफिल में,
हमदम-हमदम कहता था वो अब हमदम को भूल गया.

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