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Friday, November 22, 2024

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सोचा है के अब कार-ए-मसीहा न करेंगे

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सोचा है के अब कार-ए-मसीहा न करेंगे
वो ख़ून भी थूकेगा तो परवा न करेंगे

इस बार वो तल्ख़ी है के रूठे भी नहीं हम
अब के वो लड़ाई है के झगड़ा न करेंगे

याँ उस के सलीक़े के ही आसार तो क्या हम
इस पर भी ये कमरा तह ओ बाला न करेंगे

अब नग़मा-तराज़ान-ए-बर-अफ़रोख़्ता ऐ शहर
वासोख़्त कहेंगे ग़ज़ल इंशा न करेंगे

ऐसा है के सीने में सुलगती हैं ख़राशें
अब साँस भी हम लेंगे तो अच्छा न करेंगे

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