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शाम हुई है यार आए हैं यारों के हम-राह चलें
आज वहाँ क़व्वाली होगी ‘जौन’ चलो दर-गाह चलें
अपनी गलियाँ अपने रमने अपने जंगल अपनी हवा
चलते चलते वज्द में आएँ राहों में बे-राह चलें
जाने बस्ती में जंगल हो या जंगल में बस्ती हो
है कैसी कुछ ना-आगाही आओ चलो ना-गाह चलें
कूच अपना उस शहर तरफ़ है नामी हम जिस शहर के हैं
कपड़े फाड़ें ख़ाक-ब-सर हों और ब-इज़्ज़-ओ-जाह चलें
राह में उस की चलना है तो ऐश करा दें क़दमों को
चलते जाएँ चलते जाएँ यानी ख़ातिर ख़्वाह चलें