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लाज़िम है अपने आप की इमदाद कुछ करूँ
सीने में वो ख़ला है के ईजाद कुछ करूँ
हर लम्हा अपने आप में पाता हूँ कुछ कमी
हर लम्हा अपने आप में ईज़ाद कुछ करूँ
रू-कार से तो अपनी मैं लगता हूँ पाए-दार
बुनियाद रह गई पा-ए-बुनियाद कुछ करूँ
तारी हुआ है लम्हा-ए-मौजूद इस तरह
कुछ भी न याद आए अगर याद कुछ करूँ
मौसम का मुझ से कोई तक़ाज़ा है दम-ब-दम
बे-सिलसिला नहीं नफ़स-ए-बाद कुछ करूँ