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मेरे संग-ए-मज़ार पर फ़रहाद
रख के तेशा कहे है ‘या उस्ताद’
हम से बिन मर्ग क्या जुदा हो मलाल
जान के साथ है दिल-ए-नाशाद
फ़िक्र-ए-तामीर में न रह मुनीम
ज़िन्दगी की कुछ भी है बुनियाद
ख़ाक भी सर पे डालने को नहीं
किस ख़राबे में हम हुये आबाद
सुनते हो तुक सुनो कि फिर मुझ बाद
न सुनोगे ये नाला-ओ-फ़रियाद
हर तरफ़ हैं असीर हम-आवाज़
बाग़ है घर तेरा तो ऐ सय्याद
हम को मरना ये है के कब होवे
अपनी क़ैद-ए-हयात से आज़ाद