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‘मीर’ दरिया है, सुने शेर ज़बानी उस की
अल्लाह अल्लाह रे तबियत की रवानी उस की
मिंह तो बोछाड़ का देखा है बरसते तुमने
इसी अंदाज़ से थी अश्क-फ़िशानी उस की
बात की तर्ज़ को देखो तो कोई जदू था
पर मिली ख़ाक में सब सहर बयानी उस की
मर्सि-ए-दिल के कई कह के दिये लोगों ने
शहर-ए-दिल्ली में है सब पास निशानी उस की
अब गये उस के जो अफ़सोस नहीं कुछ हासिल
हैफ़ सद हैफ़ कि कुछ क़द्र न जानी उस की