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Sunday, December 22, 2024

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बेखुदी कहाँ ले गई हमको / मीर तक़ी ‘मीर’

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बेखुदी कहाँ ले गई हमको,

देर से इंतज़ार है अपना

रोते फिरते हैं सारी सारी रात,

अब यही रोज़गार है अपना

दे के दिल हम जो गए मजबूर,

इस मे क्या इख्तियार है अपना

कुछ नही हम मिसाल-ऐ- उनका लेक

शहर शहर इश्तिहार है अपना

जिसको तुम आसमान कहते हो,

सो दिलो का गुबार है अपना

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