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प्रथम सकल सुचि मज्जन अमल बास,
जावक सुदेस केस-पास को सम्हारिबौ।
अंगराज भूषन बिबिध मुखबास-राग,
कज्जल कलित लोल लोचन निहारिबौ॥
बोलनि हँसनि मृदु चाकरी, चितौनि चार,
पल प्रति पर प्रतिबत परिपालिबौ।
‘केसोदास’ सबिलास करहु कुँवरि राधे,
इहि बिधि सोरहै सिंगारनि सिंगारिबौ॥