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Sunday, December 22, 2024

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तू अगर हम-कलाम हो जाता / ईश्वरदत्त अंजुम

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तू अगर हम-कलाम हो जाता
ग़म का किस्सा तमाम हो जाता।

तेरी तस्वीर आँख में रहती
दिल में तेरा क़ियाम हो जाता।

झूम जाती ख़ुशी से शामे-ग़म
जो नज़र से सलाम हो जाता।

गुंचा गुंचा चमन का झूम उठता
तू जो महवे-ख़िराम हो जाता।

वो नज़र ही नहीं उठी वरना
कुछ सलामो-कयाम हो जाता।

फिर वो आ जाते बाम पर ऐ दिल
फिर मुन्नवर वो बाम हो जाता।

उन का दीदार कर के ऐ ‘अंजुम’
शेर कहते तो नाम हो जाता।

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