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जाने कब से सन्दल पर साँपों का क़ब्ज़ा है
ख़ुशबू का तन ज़हरीले बन्धन में जकड़ा है
कल मज़हब के मेले में दूकानें लगती थीं
अब मज़हब की दूकानों पर मेला लगता है
आँधी आती है तो धरती को फल मिलते हैं
पेड़ों को फल रोके रखने का फल मिलता है
गलियाँ सड़कें घर दूकानें चाहे जैसी हों
लोग जहाँ अच्छे होते हैं अच्छा लगता है