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Sunday, September 8, 2024

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चुनिन्दा अश्आर- भाग एक / मीर तक़ी ‘मीर’

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१.
नाहक़ हम मजबूरों पर यह तुहमत है मुख़्तारी की
चाहते हैं सो आप करें हैं, हमको अबस बदनाम किया
२.
दिल वो नगर नहीं कि फिर आबाद हो सके
पछताओगे सुनो हो , ये बस्ती उजाड़कर
३.
मर्ग इक मान्दगी का वक़्फ़ा है
यानि आगे चलेंगे दम लेकर
४.
कहते तो हो यूँ कहते , यूँ कहते जो वोह आता
सब कहने की बातें हैं कुछ भी न कहा जाता
५.
तड़पै है जबकि सीने में उछले हैं दो-दो हाथ
गर दिल यही है मीर तो आराम हो चुका
६.
सरापा आरज़ू होने ने बन्दा कर दिया हमको
वगर्ना हम ख़ुदा थे,गर दिले-बे-मुद्दआ  होते
७.
एक महरूम चले मीर हमीं आलम से
वर्ना आलम को ज़माने ने दिया क्या-क्या कुछ?
८.
हम ख़ाक में मिले तो मिले , लेकिन ऐ सिपहर!
उस शोख़ को भी राह पे लाना ज़रूर था
९.
अहदे-जवानी रो-रो काटी, पीरी में लीं आँखें मूँद
यानी रात बहुत थे जागे सुबह हुई आराम किया
१०.
रख हाथ दिल पर मीर के दरियाफ़्त कर लिया हाल है
रहता है अक्सर यह जवाँ, कुछ इन दिनों बेताब है

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