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क़द्र रखती न थी मता-ए-दिल
सारे आलम को मैं दिखा लाया
दिल के इक क़तरा खूँ नहीं है बेश
एक आलम के सर बला लाया
सब पे जिस बार ने गिरानी की
उस को ये नातवाँ उठा लाया
दिल मुझे उस गली में ले जाकर
और भी खाक में मिला लाया
इब्तिदा ही में मर गए सब यार
इश्क़ की कौन इंतिहा लाया
अब तो जाते हैं बुतकदे से मीर
फिर मिलेंगे अगर खुदा लाया