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Thursday, November 21, 2024

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कभी अहसास होता है / ओमप्रकाश चतुर्वेदी ‘पराग’

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कभी अहसास होता है मुकम्मल आदमी हूँ मैं

कभी लगता है जैसे आदमी की इक डमी हूँ मैं

कभी हूँ हर खुशी की राह में दीवार काँटों की

कभी हर दर्द के मारे की आँखों की नमी हूँ मैं

धधकता हूँ कभी ज्वालामुखी के गर्म लावे-सा

कभी पूनम की मादक चाँदनी-सा रेशमी हूँ मैं

कभी मेरे बिना सूना रहा, हर जश्न, हर महफिल

कभी त्यौहार पर भी एक सूरत मातमी हूँ मैं

कभी मौजूदगी मेरी चमन में फालतू लगती

कभी फूलों की मुस्कानों की खातिर लाजिमी हूँ मैं

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