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Sunday, December 22, 2024

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अब जुनू कब किसी के बस में है

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अब जुनूँ कब किसी के बस में है
उसकी ख़ुशबू नफ़स-नफ़स में है

हाल उस सैद का सुनाईए क्या
जिसका सैयाद ख़ुद क़फ़स में है

क्या है गर ज़िन्दगी का बस न चला
ज़िन्दगी कब किसी के बस में है

ग़ैर से रहियो तू ज़रा होशियार
वो तेरे जिस्म की हवस में है

बाशिकस्ता बड़ा हुआ हूँ मगर
दिल किसी नग़्मा-ए-जरस में है

‘जॉन’ हम सबकी दस्त-रस में है
वो भला किसकी दस्त-रस में है

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